कबीर दास के दोहे अर्थ सहित | Kabir das Ke Dohe in Hindi


Kabir das Ke Dohe in Hindi / कबीर दास के दोहे हिंदी में अर्थ सहित : दोस्तों आज हम आपको 'Kabir Ke Dohe' हिंदी में अर्थ सहित बताएंगे. यदि आपको नहीं पता कि कबीरदास कौन है? तो हम आपको बता दें कि कबीर दास इतिहास के एक महान संत हैं. कबीरदास अपने दोहों की वजह से आज भी याद किए जाते हैं. कबीर दास के दोहे में संक्षिप्त संदेश छुपा होता है. जिसको आज हम आपको अर्थ सहित हिंदी में बताएंगे. यदि आप "Kabir das Ke Dohe" का अर्थ जानना चाहते हैं, तो आपको यह लेख पसंद आएगा.
Kabir das

Kabir das Ke Dohe in Hindi - कबीर के दोहे अर्थ सहित

दोहा (Doha) -

शीलवंत सबसे बड़ा, सब रत्नन की खान।
 तीन लोक की संपदा, रही शील में आन।।

अर्थ - इस दोहे के माध्यम से कबीर दास जी कहते हैं कि- "शीलवान एवं संतुष्टि का गुण दुनिया के सभी गुणों में श्रेष्ठ है. शीलवान लोग  रत्नों के मुकाबले में अच्छे माने जाते हैं. जिस व्यक्ति के अंदर शालीनता का निवास रहता है वह दुनिया का सबसे सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति कहलाने के लायक है."

दोहा (Doha) -

साईं इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु भी भूखा ना जाए।।

अर्थ - इस दोहे में कबीर दास जी भगवान से विनती करते हुए कहते हैं.  "हे ईश्वर! मेरे ऊपर इतनी कृपा बनाए रखना कि मेरे परिवार का भरण-पोषण अच्छे से होता रहे. मैं ज्यादा धन की इच्छा नहीं रखता. बस इतनी नजर रखना कि मेरा परिवार और मैं भूखा ना सोए और मेरे दरवाजे पर आने वाला कोई भी जीव भूखा ना जाए."

दोहा (Doha) -

प्रेम प्याला जो पिए, शीश दक्षिणा दे।
लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का ले।।

अर्थ - कबीर दास जी कहते हैं कि- "जो व्यक्ति भगवान की भक्ति करता है तथा प्रेम का आनंद पाना चाहता है. उस व्यक्ति को जीवन के दुख-सुख, लोभ-मोह, अहंकार से मुक्त होकर भगवान की चरणों में अपना ध्यान लगाना पड़ेगा. लेकिन लालची व्यक्ति लोभ, मोह, अहंकार से मुक्त न होकर ईश्वर को पाना चाहता है. लेकिन इस रास्ते पर चलकर उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती."

दोहा (Doha) -

कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर।
जो पर पीर न जाने ही, सो का पीर में पीर।।

अर्थ - कबीर दास जी कहते हैं कि- "वह मनुष्य श्रेष्ठ होता है जो दूसरों के दुख दर्द को अपने दुख दर्द जैसा समझता है. एवं जो व्यक्ति दूसरों के दुख दर्द को ना समझते हुए केवल अपने बारे में सोचता है, वह व्यक्ति मनुष्य कहलाने के लायक नहीं है."

दोहा (Doha) -

कबीरा ते नर अंध है, गुरु को कहते और।
 हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर।।

अर्थ - कबीर दास जी इस दोहे में गुरु की महिमा को न समझ पानी वाले व्यक्तियों को मूर्ख बता रहे हैं. इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि- "यदि आप से ईश्वर रुठ जाए तो आप सतगुरु के सहारे अपना गुजारा कर सकते हैं. लेकिन यदि आपसे सतगुरु रूठ जाएं तो आपका कोई सहारा नहीं है."

दोहा (Doha) -

कबीरा सुता क्या करें, जागी ना जाए मुरारी।
 एक दिन तू भी सोवेगा, लंबे पांव पसारी।।

अर्थ - कबीर दास जी कह रहे हैं कि- "कुछ समय ईश्वर का ध्यान करें. सारा समय सोने में व्यतीत ना करें. अन्यथा! एक दिन ऐसा आता है, जब हर मनुष्य को हमेशा के लिए सोना पड़ता है, और उस समय आपके पास कोई विकल्प नहीं होता है".

दोहा (Doha) -

नाहीं शीतल है चंद्रमा, हिम नहीं शीतल होय।
 कबीर शीतल संत जन, नाम स्नेही होय।।

अर्थ - कबीर दास जी कहते हैं कि- "सज्जन व्यक्ति चंद्रमा, हिमालय, बर्फ आदि सभी से सीतल (शांत) होते है. कबीर दास जी के अनुसार सच्चे साधु सन्यासी में भी वही गुण होते हैं जो एक सज्जन पुरुष में देखने को मिलते हैं. वे हमेशा संतुष्ट एवं स्नेह करने वाले लोगों को श्रेष्ठ मानते हैं."

दोहा (Doha) -

राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय।
जो सुख साधु संग में, वह बैकुंठ न होय।।

अर्थ - इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि- "साधु की संगति की अहमियत पहचानने वाले लोगों के लिए साधु की संगति सबसे अद्भुत एवं सुख देने वाली वाली होती है. यह सुख कहीं और नहीं पाया जा सकता." कबीर दास जी आगे कहते हैं कि- "यदि भगवान मेरे पास अपना दूत भेजेगे, तो मैं उन से विनती करूंगा कि अभी मुझे कुछ समय साधु की संगति में व्यतीत करने का अवसर दें. क्योंकि इतना सुख मरने के पश्चात स्वर्ग में भी प्राप्त नहीं हो सकता जितना सुख-साधु की संगति में मुझे मिल सकता है."

दोहा (Doha) -

प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हट विकाए।
राजा प्रजा जो ही रुचे, शीश दे ही ले जाए।।

अर्थ - कबीर दास जी इस दोहे में प्रेम के बारे में बताते हैं. कबीर दास जी कहते हैं कि- "प्रेम यानी प्यार किसी घास-फूस एवं फसल की तरह कहीं उगता नहीं है ना ही प्रेम कहीं बाजारों एवं दुकानों में किलो के भाव नही मिलता है. जिस व्यक्ति को प्रेम चाहिए, वह राजा हो या प्रजा या फिर कोई सामान्य व्यक्ति कुछ भी करके प्रेम को पा ही लेता है."

दोहा (Doha) -

 जिन घर साधु न पूजिये, घर की सेवा नाही।
 ते घर मरघट जानिए, भूत बसे तिन माही।।

अर्थ - कबीरदास जी दोहे में कहते हैं कि "जिस घर में साधु संत एवं गुरु का आदर सत्कार नहीं किया जाता, जिस घर में साधु संतों की सेवा नहीं की जाती. वह घर मरघट (मृत्यु के बाद यहां शव को जलाया जाता है) के समान है. ऐसे घरों में रात्रि में एवं दिन के समय भूतों का बसेरा रहता है."

दोहा (Doha) -

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार सार को गहि रहे थोथा देए उड़ाय।।

अर्थ - कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि- "साधु को ऐसा होना चाहिए जैसा कि एक सूप होता है. सूप जैसे  बेकार अनाज को अलग कर देता है एवं अच्छे अनाज को ग्रहण कर लेता है. उसी प्रकार एक साधु को हमेशा अच्छी बातों की तरफ भी ध्यान देना चाहिए. दुनिया की समस्त बुराइयों को छोड़ कर सूप की तरह खुद से दूर रखना चाहिए."

दोहा (Doha) -

पाछे दिन पाछे गए, हरि से किया न हेत।
अब पछताए होत क्या, चिड़िया चुग गई खेत।।

अर्थ - कबीर दास जी कहते हैं कि- "जीवन का अमूल्य समय व्यर्थ ही बिता दिया, उस दौर में आप कुछ अच्छा कर सकते थे. मनुष्य अपने जीवन को यूं ही व्यर्थ कर देता है. वह ना तो किसी के साथ परोपकार करता है और ना हीं भगवान का ध्यान करता है. जब बुढ़ापा आ जाता है और समय निकल निकल जाता है. तब पछताने का कोई लाभ नहीं होता."

दोहा (Doha) -

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाही
सब अंधियारा मिट गया दीपक देखा माही

अर्थ - दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि- "जब मेरे अंदर अहंकार था, तब मेरे हृदय में ईश्वर का वास नहीं था. और जब मेरे अंदर ईश्वर का वास है तो अब मुझे अहंकार छू भी नहीं सकता. जब से मुझ पर सतगुरु की कृपा हुई है, तब से मेरे अंदर मौजूद अहंकार का अंत हो गया है. वास्तव में सतगुरु की महिमा मेरे जीवन में अहम भूमिका निभाती है."

दोहा (Doha) -

नहाए धोए क्या हुआ, जो मन मैल ना जाए।
 मीन सदा जल में रहे, धोए बास ना जाए।।

अर्थ - इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि- "आप पानी से अपने शरीर को कितना भी ऊपर से साफ कर लो, 'नहा धो लो'. यदि आप अपनी आत्मा का शुद्धिकरण नहीं करेंगे तो आपके बाहरी दिखावा एवं सफाई का कोई मतलब नहीं है." जैसे मछली हमेशा पानी के अंदर रहती है और साफ-सुथरी भी रहती है, लेकिन उसके अंदर की बदबू कितनी भी धोने के बाद भी नहीं जाती है.

दोहा (Doha) -

जल में बसे कुबोदनी, चंदा बसे आकाश।
 जो है जाको भावना, सो ताही के पास।।

अर्थ - कबीर दास जी इस दोहे में चंद्रमा और जल की उपमा देते हुए बता रहे हैं, कि यदि कोई व्यक्ति किसी के प्रति प्रेम एवं श्रद्धा भाव रखता है और प्रबल इच्छा से प्राप्त करना चाहता है, तो एक समय ऐसा आता है. कि उस व्यक्ति की इच्छा पूरी हो जाती है. उदाहरण के लिए जिस प्रकार कमल जल जल मैं रहता है. चंद्रमा आकाश में बसता है. लेकिन फिर भी आकाश में होने के बाद भी वह रात्रि को तालाब के पानी में चमकता है. उसी प्रकार यदि आप ईश्वर से ध्यान लगाते हैं तो ईश्वर आपके अंदर ही मिल जाएगा.

दोहा (Doha) -

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान।।

अर्थ - कबीरदास जी इस दोहे में कहते हैं कि साधु से कभी उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए.  साधु से ज्ञान की बात करनी चाहिए, और यदि आपको मोलभाव नहीं करना आता तो कबीर दास जी कहते हैं कि हमेशा मूल्यवान एवं काम की चीजों का ही मोलभाव पर जोर देना चाहिए. यदि आप तलवार खरीदते हैं तो आपको तलवार का मोल भाव करना चाहिए और म्यान के बारे में ध्यान नहीं देना चाहिए.

दोहा (Doha) -

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय।
 यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए।।

अर्थ - इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं, यदि आप शीतल एवं अच्छे मन के व्यक्ति हैं, तो आपके अंदर दया का भाव होना चाहिए. इस दुनिया में आपका दुश्मन कोई नहीं हो सकता. कबीरदास जी आगे कहते हैं, कि "यदि आप मैं ऊपर बताई गई आदत नहीं है तो आपको ऐसी आदत डाल लेनी चाहिए."

दोहा (Doha) -

ते बिन गए अकारथ ही, संगत वहीं न संग।
 प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत।।

अर्थ - इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि- "व्यर्थ में जो समय आप बिता रहे हैं, वह आपके किसी काम का नहीं है. यदि आप बुरे लोगों की संगति कर रहे हैं तो आपका मूल्यवान समय भी व्यर्थ समय के समान है." कबीर दास जी कहते हैं कि- "व्यर्थ समय अच्छे लोगों की संगति में बताएं, इससे आपका समय व्यर्थ नहीं जाएगा." आगे कबीर दास जी कहते हैं कि - "प्रेम अथवा भक्ति से दूर रहने वाला इंसान पशु के समान है. भक्ति करने वाले मनुष्य के हृदय में भगवान का निवास स्थान है."

दोहा (Doha) -

तीरथ गए ते एक फल, संत मिले फल चार।
संत गुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार।।

अर्थ - इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि- "गुरु की महिमा एवं महत्व दुनिया में सर्वोपरि है." कबीर दास जी के अनुसार यदि आप तीर्थ यात्रा करते हैं तो आपको एक फल प्राप्त होता है. तथा संत मिले और उनकी सेवा आपने की, तो आपको चार फल प्राप्त होते हैं. इन सब से परे यदि आपको सच्चे सतगुरु की प्राप्ति हो जाए तो आप का कल्याण हो जाएगा.

दोहा (Doha) -

तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोय।
सहेजे सब विधी पाइए, जो मन जोगी होय।।

अर्थ - इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि- "मनुष्य रोजाना तन को साफ करता है एवं मन की सफाई का उसे कोई ज्ञान नहीं होता. जो मनुष्य अपने तन की सफाई के साथ-साथ अपने मन और आत्मा की सफाई (आत्मचिंतन) की तरफ ध्यान देता है अथवा उसे पूर्ण रूप से करता है, वह मनुष्य सही मायने में मनुष्य कहलाने के लायक है."

दोहा (Dohe) -

 जहां दया तहां धर्म है, जहां लोभ वहां पाप।
 जहां क्रोध तहां काल है, जहां क्षमा वहां आप।।

अर्थ - कबीरदास जी दोहे में कहते हैं कि जहां पर जीवो के प्रति दया का वास है, वहां पर धर्म का भी बॉस है.  जहां लोभ रहता है, वहां पाप उत्पन्न हो जाता है. कबीर दास जी ने क्रोध की जगह पर "काल" के होने का संदेश दिया है. तथा जहां पर क्षमा है वहां ईश्वर की अस्तित्व का संकेत दिया है. कबीर दास जी ने इस दोहे में सभी महत्वपूर्ण एवं अति आवश्यक बातों का जिक्र किया है. यह बातें इंसान के जीवन को सरल और बेहतर बनाने के लिए जरूरी है.

दोहा (Dohe) -

 जो घट प्रेम न संचरे, जो घट जान समान।
 जैसे खाल लुघर की, सांस लेती बिन प्राण।।

अर्थ - इस दोहे में कबीर दास जी ने इंसान के स्वभाव के बारे में जिक्र किया है. वह कहते हैं कि जो इंसान दूसरे जीव एवं व्यक्तियों के प्रति प्रेम भाव व्यक्त नहीं कर सकते अथवा प्रेम भावना नहीं रखते, वे व्यक्ति पशु के समान माने जाते है.

दोहा (Dohe) -

 यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
 शीश दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।

अर्थ - इस दोहे में कबीर दास जी स्वयं एवं अन्य व्यक्तियों के तन को जहर की बेल जैसा बता रहे हैं. तथा गुरु को अमृत की खान से तुलना कर रहे हैं. कबीर दास जी कहते हैं यदि शीश यानी कि सिर काटकर देने से अच्छा गुरु मिल जाए फिर भी सौदा सस्ता ही रहेगा. इस दोहे में कबीर दास जी ने गुरु की महत्वता का वर्णन किया है. साथ ही साथ कबीरदास से गुरु की महिमा का बखान कर रहे हैं. क्योंकि आज के दिखावे भरी दुनिया में अच्छे गुरु का मिलना रेगिस्तान में पानी के मिलने जैसा है.

दोहा (Dohe) -

 पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात।
 देखत ही छुप जाएगा, ज्यो सारा प्रभात।।

अर्थ - कबीरदास जी दोहे में कहते हैं कि इंसान का अस्तित्व संसार में एक पानी के बुलबुले के समान है. जैसे बुलबुला उठता है, उसके कुछ क्षण बाद ही समाप्त हो जाता है. इस दोहे में कबीर दास जी ने इंसान को संसार की मोह माया के बारे में बताया है. उन्होंने इंसान की उपमा पानी के बुलबुले से की है. जैसे एक समय पर इंसान इस दुनिया में भोग विलास में लीन रहता है, और प्रत्येक चीज को अपना ही समझता है. लेकिन संसार के नियम अनुसार वह एक दिन इस संसार से समाप्त हो जाता है. जैसे पानी का बुलबुला बरसात के कुछ शण पश्चात समाप्त हो जाता है.

दोहा (Dohe) -

मालिक आवत देखकर कलियन करे पुकार।
 फूले फूले चुन लिए, कली हमारी बार।।

अर्थ - कबीर दास जी ने इस दोहे में जीवन मृत्यु के चक्र पर प्रकाश डाला है. कबीर दास जी ने फूलों का उदाहरण देते हुए कहा है कि बगीचे में जब फूल अपने मालिक को आते हुए देखते हैं, तो अपने पास वाली कली एवं फूलों से बात करते हुए कहते हैं कि "आज हमारा नंबर है, तो तुम भी इसी तरह तोड़ लिए जाओगे". यह जीवन की सच्चाई है जो इस पृथ्वी पर आता है, वह एक समय पर इस दुनिया को छोड़ कर चला जाता है. इस संसार में मृत्यु की सच्चाई को कोई भी नकार नहीं सकता.

दोहा (Dohe) -

चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोय।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय।।

अर्थ - कबीरदास जी ने इस दोहे में संसार की सच्चाई अवगत कराया है. कबीरदास जी इस संसार को माया रूपी चक्की के समान मानते हैं, जिस प्रकार चलती हुई चक्की में गेहूं के दाने पिस जाते हैं, ठीक उसी प्रकार इस माया रुपी संसार में भी कभी न कभी हमारे शरीर का विनाश निश्चित है.

दोहा (Dohe) -

 काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
 पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब।।

अर्थ - कबीर दास जी ने इस दोहे में समय की महत्वता को बताया है. इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि आज के काम को कभी कल पर नहीं छोड़ना चाहिए अन्यथा अमूल्य समय बीत जाने पर इंसान के पास केवल पछतावा रह जाता है. इस दोहे में कबीर दास जी ने समय को सबसे अमूल्य बताया है. इसीलिए हमें समय के महत्व को समझना चाहिए अन्यथा जीवन में कुछ विशेष हासिल नहीं कर पाएंगे.

दोहा (Dohe) -

ज्यो तिल माही तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा साईं तुझ में है, जाग सके तो जाग।।

अर्थ - कबीर दास जी दोहे के माध्यम से सामाजिक अंधविश्वास को दूर करने के लिए कह रहे हैं. उन्होंने इस दोहे में बताया है कि जैसे 'तिल के अंदर तेल छुपा हुआ है, जैसे माचिस के अंदर आग छुपी हुई है, जैसे आंख के अंदर उजाला छुपा हुआ है, उसी प्रकार प्रत्येक इंसान के अंदर ईश्वर विराजमान है'. यदि आप का चित् स्तर है, तो आप अपने अंदर मौजूद ईश्वर को खोज सकते हैं. इसके लिए आपको मंदिर-मस्जिद एवं चर्च आदि स्थानों पर भटकने की जरूरत नहीं है.

दोहा (Dohe) -

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
 ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।

अर्थ - इस दोहे में कबीर दास जी प्रेम को दुनिया में सबसे विशेष मानते हैं. कबीर दास जी के अनुसार यदि कोई प्यार का असल मतलब समझ जाता है तो उस व्यक्ति के सामने विद्वानों का ज्ञान भी फीका महसूस होता है. इस दोहे में कबीर दास जी ने प्यार को सभी ज्ञान एवं विद्वानों से ऊपर बताया है और लोगों को आपस में प्यार से मिलजुल कर रहने का संदेश दिया है.

दोहा (Dohe) -

 धीरे धीरे रेमना, धीरे सब कुछ होय।
 माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।।

अर्थ - कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं, कि यदि आप कोई काम करना चाहते हैं तो उसकी शुरूआत छोटे स्तर से करनी चाहिए. जब आप किसी काम को छोटे पैमाने पर अच्छे से करने लगेंगे. तो वह काम बड़ा होने लग जाएगा. उदाहरण के लिए जब माली एक नया बगीचा लगाता है, तो धीरे-धीरे बगीचे को सींचता है. और समय आने पर उस पौधे पर फल भी आते हैं. कबीरदास जी ने यहां पर आपको व्यापार की स्थिति से अवगत कराया है, जो आपके लिए सफलता का सूत्र साबित हो सकता है.

दोहा (Dohe) -

 दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
 जो सुख में सुमिरन करें, तो दुख काहे को होय।।

अर्थ - कबीर दास जी ने इस दोहे में इंसान के दुख के कारण एवं उपाय का संदेश दिया है. कबीर दास जी कहते हैं कि यदि आप समय रहते अपने कर्मो को सही तरीके से करना शुरू कर ले तो आपको परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा. उन्होंने कहा है कि- 'इंसान की प्रवृत्ति ऐसी है कि जब उसे दुख का आभास होता है. तभी वह दुखों को दूर करने वाली जरूरी कामों को करता है. यदि वह व्यक्ति पहले से ही सभी कामों को अच्छे से करें तो जीवन में दुख कभी देखना ही नहीं पड़ेगा."

दोहा (Dohe) -

 अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
 अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।

अर्थ - कबीरदास जी दोहे में बता रहे हैं कि हर चीज की हद से ज्यादा अति करना बुरी बात है. कबीर दास ने उदाहरण देते हुए बताया है कि ज्यादा बोलना और ज्यादा चुप रहना जिस तरह हानिकारक है. उसी प्रकार ज्यादा बारिश और ज्यादा धूप अच्छी नही होती है. कबीर दास जी इस दोहे का साधारण अर्थ यह है कि- "किसी भी चीज या आदत की अति नहीं करनी चाहिए अन्यथा परिणाम दुष्परिणाम में भी बदल सकते हैं".

दोहा (Dohe) -

 गुरु गोविंद दोऊ खडे, काके लागू पाय।
 बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए।।

अर्थ - कबीर दास जी ने इस दोहे में गुरु की अपार महिमा का वर्णन किया हैं. कबीर दास जी कहते हैं कि गुरु ने हमे भगवान तक पहुंचाने के रास्ते से अवगत कराया है. इसीलिए गुरु और भगवान में से किसी एक के चरण स्पर्श करने का अवसर मिले तो मैं गुरु के चरण स्पर्श करना पसंद करूंगा. इस दोहे में कबीर दास जी ने गुरु की महिमा को ईश्वर से भी बड़ा बताया है. उनके अनुसार गुरु वह व्यक्ति है, जो आपको अंधकार से प्रकाश की तरफ ले जाता है.

दोहा (Dohe) -

सब धरती कागज करूं, लेखनी सब बनराज।
सात समुद्र की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाए।।

अर्थ - इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि यदि पूरी धरती के आकार जितना बड़ा कागज बना लिया जाए, और सभी वानर (बंदरों) एवं इंसानों को लिखने के लिए लगा दिया जाए. सभी समुंदर के पानी जितनी स्याही बना ली जाए, फिर भी गुरु गुणों को लिखना असंभव होगा. इस दोहे में कबीर दास जी ने गुरु की महिमा की तुलना समुंद्र एवं पूरी पृथ्वी से की है. उनके अनुसार यदि आपके पास श्रेष्ठ गुरु होता है तो आप का जीवन धन्य हो जाएगा.

दोहा (Dohe) -

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।

अर्थ - इस दोहे में कबीर दास जी बड़े स्वार्थी धनवान लोगों की तुलना खजूर के पेड़ से कर रहे हैं. कबीर दास जी दोहे के माध्यम से कहते हैं, कि बड़े धनवान मतलबी लोग खजूर के पेड़ के समान है. जैसे - "खजूर का पेड़ बड़े होने पर इंसान को कोई फायदा नहीं पहुंचाता है और उसके फल  साधारण व्यक्ति की पहुंच से दूर होते हैं". उसी प्रकार किसी "धनवान स्वार्थी व्यक्ति से संबंध रखने में किसी प्रकार का कोई लाभ नहीं है. ऐसे लोग आपके किसी भी काम नहीं आएंगे. ऐसे व्यक्तियों के धनवान होने का कोई अर्थ नहीं है".

दोहा (Dohe) -

बुरा जो देखन को चला, बुरा ना मिलया कोय।
जो दिल खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय।।

अर्थ - कबीर दास इस दोहे के माध्यम से कहते हैं कि यदि आप इस दुनिया में किसी भी अन्य व्यक्ति की बुराईयों को देखना चाहते हैं, या फिर इस दुनिया की बुराइयों को समझना चाहते हैं. तो अपनी आत्मा का चिंतन करें. यदि आप स्वयं अंदर से अच्छे हैं तो दुनिया का कोई भी व्यक्ति आपके लिए बुरा नहीं हो सकता. इस दोहे में कबीर दास जी ने स्वयं की कमियों को ठीक करने के लिए आत्ममंथन करने का जिक्र किया है.

दोहा (Dohe) -

करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निशान।।

अर्थ - कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से कह रहे हैं, कि यदि आप किसी काम को लेकर लगातार अभ्यास कर रहे हैं. लंबे समय तक लगातार अभ्यास करते रहने के बाद, उस काम में एक समय ऐसा आएगा जब आप उस काम के विशेषज्ञ बन जाएंगे. उदाहरण के लिए कबीर दास जी कहते हैं - जैसे "कुए पर रस्सी लगातार चलने की वजह से पत्थर यानी कि सिल पर अपने निशान छोड़ देती है, जबकि रस्सी पत्थर से कोमल होती है. उसी प्रकार अभ्यास करते रहने से कोई भी काम नामुमकिन नहीं रहता."

दोहा (Dohe) -

 ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय।।

अर्थ - कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से कह रहे हैं कि आप किसी व्यक्ति से बात करते समय अच्छी कोमल और सम्मानजनक वाणी का प्रयोग करें. इससे आपको फायदा यह होगा कि जैसे आप अच्छे शब्दों का उपयोग दूसरों के लिए करेंगे, ठीक वैसे ही सामने वाला व्यक्ति भी आपको सम्मानजनक शब्दों से लाभाविंत करेगा. देखा जाए तो कबीर दास जी ने यह बात शत प्रतिशत ठीक कही है और यह आज के समय के अनुसार एकदम सही दोहा है.
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दोहा (Dohe) -

 वाणी बड़ी अनमोल है, जो कोई जाने बोल।
 हिये तराजू तोल के, तब मुख बाहर खोल।।

अर्थ - कबीर दास जी इस दोहे में वाणी को दुनिया की सबसे कीमती वस्तुओं में से एक बताते हैं. उनके अनुसार बाणी का कोई मूल्य नहीं है, वाणी अनमोल है. कबीर दास जी के अनुसार 'आपके द्वारा कहे गए शब्द अनमोल होते हैं'. कबीर दास जी ने दूसरी लाइन में कहा है कि- 'हर व्यक्ति को कुछ भी बोलने से पहले शब्दों का आकलन कर लेना चाहिए और याद रखना चाहिए कि आप अपने मुख से अच्छे शब्दों का प्रयोग करें.'

दोहा (Dohe) -

 माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
 एक दिन ऐसा आएगा, मैं रो दूंगी तोय।।

अर्थ - इस दोहे में कबीर दास जी ने मिट्टी और कुमार की उपमा देते हुए दुनिया की सच्चाई से अवगत कराया है. उन्होंने बताया है कि कोई कितना भी धन इखट्टा क्यों न कर ले, लेकिन एक दिन ऐसा आता है, जब इंसान इस दुनिया को एवं धन-दौलत, परिवार आदि को यही पर छोड़कर मिट्टी में मिल जाता है. यहां पर मिट्टी में मिलने का तात्पर्य (मृत्यु) से है. जो इस दुनिया की अटल सच्चाई है.

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