स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण | swami vivekananda speech in hindi


Swami Vivekananda Speech in Hindi (स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण) : हेलो दोस्तो! आज के इस लेख में हम आपको स्वामी विवेकानंद जी के द्वारा सन 1893 शिकागो (अमेरिका) में दिए गए भाषण के बारे में विस्तार से बताएंगे. भारत में बहुत से लोग हैं जो स्वामी विवेकानंद जी के विचारों से प्रभावित है. लेकिन ऐसे भी बहुत से लोग होंगे जिनको "स्वामी विवेकानंद जी के शिकागो भाषण" के बारे में नहीं पता. जिनको स्वामी जी के भाषण के बारे में पता है, उनको यह नहीं पता कि स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो भाषण के दौरान क्या कहा था.

शिकागो (अमेरिका) में दिया गया भाषण स्वामी विवेकानंद के जीवन का महत्वपूर्ण भाषण था. इस भाषण की वजह से उनके जीवन में बहुत कुछ बदल गया. 14 सितंबर 1893 शिकागो अमेरिका में विश्व धर्म सम्मेलन के मंच पर दिए गए भाषण के बाद स्वामी विवेकानंद पश्चिमी देशों में काफी लोकप्रिय हो गए. उनके इस भाषण के बाद पश्चिमी देशों के रवैया में भारत की प्रति बदलाव देखने को मिला. इसीलिए आज के इस लेख में हम आपको "स्वामी विवेकानंद के शिकागो" भाषण के बारे में बताएंगे.

स्वामी विवेकानंद जी का शिकागो भाषण - Swami Vivekananda Speech in Hindi

विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद जी ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा -
Swami Vivekanand Speech

"मेरे अमेरिका के भाइयों और बहनों....

आपके जोरदार और स्नेह पूर्ण स्वागत से मेरा मन प्रसन्नता से भर उठा है. मैं आपको दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद करता हूं. साथ ही साथ में आपको सभी धर्मों की जननी और सभी जाति धर्मो और भारत की तरफ से आप सभी का आभार व्यक्त करता हूं.

मेरा धन्यवाद उन महान वक्ताओं के लिए भी है, जिन्होंने इस मंच पर यह व्यक्त किया है कि सहनशीलता और दूरदर्शिता का भाव पूर्वी देशों से फैला है. मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म और एक ऐसे देश से आता हूं, जिसने पूरी दुनिया को सहनशीलता और शांतिप्रियता की शिक्षा दी है.

हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में विश्वास नहीं रखते हैं, अपितु हम दुनिया के सभी धर्मों के सत्य को स्वीकार भी करते हैं. मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से में संबंध रखता हूं, जहां पर औपचारिक रूप से लाचार और अत्याचारित लोगों के रहने का ठिकाना है.

मुझे यह बताते हुए काफी अच्छा महसूस हो रहा है, कि हमने उन इजराइलियों की यादों को अपने हृदय में संभालकर रखा है, जिनको रोमन हमलावरों ने मार कर भगाया और उनके धर्मस्थलों को ध्वस्त कर दिया था. तब हम ही थे, जिन्होंने इजराइलियों को अपने दिल और अपने घरों में शरण दी थी.

मुझे इस बात का भी गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिन्होंने पारसी धर्म के लोगों को अपने यहां शरण दी थी. और आज भी हम उनका भरण पोषण कर रहे हैं. "भाइयों और बहनों" मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियों को सुनाना चाहता हूं, जो मैंने बचपन में पड़ी थी. जिसे आज भी लाखों लोग दोहराते हैं.

जिस प्रकार भिन्न-भिन्न स्रोतों से निकली हुई नदियां झरने अलग-अलग होने के बावजूद समुंदर में जा कर मिल जाते हैं. उसी प्रकार मनुष्य भी अपनी समझ के अनुरूप अलग-अलग मार्ग पर चलता है. देखने में मार्ग  टेढ़े-मेढ़े हो सकते हैं, लेकिन उन रास्तों का अंत ईश्वर तक ही ले जाता है.

सांप्रदायिकता हठधर्मिता और हमारे भयानक वंशजों ने पृथ्वी को कई बार रक्त से लाल किया है. हठधर्मिता की पिछड़ी हुई सोच आज भी पृथ्वी को अपने चंगुल में जकड़े हुए हैं. इसी पिछड़ी हुई सोच ने कई बार पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है. इसी संप्रदाय हठधर्मिता की सोच की वजह से न जाने कितने देशों का विनाश हुआ, न जाने कितनी मानव सभ्यताएं नष्ट हो गई. अगर संप्रदाय जैसे दानव इस धरती पर नहीं होते तो आज मानव जाति कहीं ज्यादा उन्नत होती. लेकिन अब इनका समय पूरा हो चुका है.

मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस धर्म सम्मेलन के संखनाद से सभी संप्रदायक हठधर्मिताओ और सभी प्रकार की हिंसा चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम के माध्यम से, मनुष्य में फैली दुर्भावना, सद्भावना में बदलेगी और हर प्रकार की हिंसा का विनाश होगा.

स्वामी विवेकानंद के भाषण के अंतिम चरण में दिया गया संदेश

स्वामी विवेकानंद का भाषण

में सभी महान वक्ताओं और श्रोताओं का दिल से धन्यवाद करता हूं. जिनका हृदय समुंद्र की तरह विशाल है और जो ईश्वर और प्यार की सच्चाई को समझते हैं. मैं उन विशाल हृदय वाले महापुरुषों के प्रति आभार व्यक्त करता हूं, जो मानवता धर्म की खातिर उदार और भावुक हो जाते हैं. मैं उन श्रोताओं का भी शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने शांतिपूर्वक मेरे विचारों को सुना और अपनी सहमति प्रदान की.

इस धर्म सम्मेलन की तमाम बातें और मुंह से निकला हुआ एक एक शब्द मुझे समय-समय पर याद आता रहेगा. मैं विशेष धन्यवाद देना चाहता हूं, उन श्रोताओं को जिन्होंने उपस्थित रहकर मेरे विचारों को महान बनाया है.

यहां इस धर्म सम्मेलन में बहुत से लोगों ने बहुत सी बातें धर्म एकता पर कही थी. मैं यहां अपने स्वयं के भाषण को सर्वश्रेष्ठ बताने के लिए नहीं आया हूँ. यदि यहां कोई यह सोचता है कि धर्म एकता किसी एक धर्म के लिए सफलता लाएगी और किसी अन्य धर्म के विनाश का कारण बनेगी, तो उनको में बताना चाहता हूं, कि भाइयों! आपकी यह आशा एकदम असंभव और बेबुनियाद है.

मैं किसी क्रिश्चियन को हिंदू या फिर हिंदू को बौद्ध बनने के लिए नहीं कह रहा हूं और मुझे पूरी उम्मीद है कि भगवान मुझे ऐसा करने भी नहीं देंगे. क्योंकि मुझे पता है बीज हमेशा मिट्टी में ही बोया जाता है और धरती, हवा, पानी उसके इर्द-गिर्द होते हैं. तो क्या वह बीज हवा पानी या मिट्टी में बदल जाता है. नहीं ना, वह एक पौधे के रूप में विकसित होकर बाहर आता है और प्रकृति के नियमों के अनुसार बढ़ता है. अथवा उसमें हवा, पानी और मिट्टी किसी न किसी रूप में मिल जाते हैं.

ठीक ऐसा ही धर्म के विषय में भी होता है. एक क्रिश्चियन कभी भी हिंदू नहीं बनेगा और एक हिंदू कभी भी क्रिश्चन नहीं बनेगा. लेकिन हमें धार्मिक एकता की बजाय इंसानियत के विकास के लिए एकजुट होने की जरूरत है.

यदि हम एक धर्म सम्मेलन से कुछ सीख सकते हैं तो वह धर्म की एकता शुद्धता और पवित्रता होगी.

क्योंकि इंसान के चरित्र के निर्माण में धर्म का बहुत बड़ा योगदान होता है. यदि कोई व्यक्ति धार्मिक एकता के विषय में यह सोचता है, कि उसका धर्म ही आगे बढ़े तो ऐसे व्यक्ति के लिए मुझे दिल से लज्जा महसूस होती है. मेरे अनुसार हमारे सभी धर्म ग्रंथों में एक ही बात का जिक्र होना चाहिए और वह है, "मानव अधिकार और शांति".

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